बांझपन (Infertility) आज की दुनिया में बहुत आम हो गया है, और यह एक ऐसा दौर होता है जो दंपतियों के लिए भावनात्मक रूप से चुनौतीपूर्ण होता है।
लेकिन आधुनिक फर्टिलिटी तकनीक (Fertility Technology) जैसे IVF (इन विट्रो फर्टिलाइजेशन) और ICSI (इंट्रासाइटोप्लाज्मिक स्पर्म इंजेक्शन) ने इस संघर्ष को उम्मीद में बदल दिया है।
दोनों प्रक्रियाओं का लक्ष्य एक ही है — अंडाणु (Egg) को शुक्राणु (Sperm) से निषेचित कर गर्भधारण में मदद करना।
फिर भी, इन दोनों में फर्टिलाइजेशन की प्रक्रिया अलग होती है। आइए इसे सरल भाषा में समझते हैं।
ICSI क्या है?
ICSI (Intracytoplasmic Sperm Injection) IVF की एक उन्नत तकनीक है।
सामान्य IVF में, हजारों शुक्राणु एक अंडाणु के चारों ओर रखे जाते हैं ताकि एक शुक्राणु स्वाभाविक रूप से अंडे में प्रवेश करे।
लेकिन ICSI में वैज्ञानिक एक स्वस्थ शुक्राणु को सीधे अंडाणु के अंदर इंजेक्ट करते हैं — यह प्रक्रिया सूक्ष्म माइक्रोस्कोप के नीचे एक बहुत ही बारीक सुई से की जाती है।
इस तकनीक से उन दंपतियों को भी गर्भधारण का मौका मिलता है, जहाँ शुक्राणुओं की गुणवत्ता या संख्या बहुत कम होती है।
ICSI की प्रक्रिया (Step-by-Step)
1. अंडाणु उत्पादन (Ovarian Stimulation):
महिला को हार्मोन इंजेक्शन दिए जाते हैं ताकि अधिक परिपक्व अंडे बन सकें।
2. अंडाणु संग्रह (Egg Retrieval):
हल्की सर्जरी द्वारा अंडे निकाले जाते हैं।
3. शुक्राणु संग्रह (Sperm Collection):
पुरुष से शुक्राणु लिए जाते हैं, या आवश्यकता पड़ने पर टेस्टिस से निकाले जाते हैं।
4. ICSI चरण (Sperm Injection):
एक स्वस्थ शुक्राणु को चुना जाता है और बारीक सुई से सीधे अंडाणु के भीतर इंजेक्ट किया जाता है।
5. फर्टिलाइजेशन जांच:
लगभग 16–18 घंटे बाद, देखा जाता है कि अंडा सफलतापूर्वक निषेचित हुआ या नहीं।
6. एंब्रियो ट्रांसफर:
सबसे अच्छे एंब्रियो (भ्रूण) को गर्भाशय में ट्रांसफर किया जाता है।
ICSI और पारंपरिक IVF में अंतर
| पैरामीटर (Aspect) | पारंपरिक IVF |
ICSI (इंट्रासाइटोप्लाज्मिक स्पर्म इंजेक्शन) |
| फर्टिलाइजेशन का तरीका | हजारों शुक्राणु अंडे के चारों ओर रखे जाते हैं; स्वाभाविक निषेचन होता है। | एक ही शुक्राणु को अंडे के अंदर इंजेक्ट किया जाता है। |
| उपयोग के मामले | जब शुक्राणु की संख्या और गति सामान्य हो। | जब शुक्राणु की संख्या या गुणवत्ता बहुत कम हो। |
| शुक्राणु की आवश्यकता | बहुत सारे सक्रिय शुक्राणु चाहिए। | केवल कुछ शुक्राणु या प्रति अंडे एक शुक्राणु ही पर्याप्त। |
| सफलता दर | लगभग 60–70% (शुक्राणु गुणवत्ता पर निर्भर)। | 80–90% तक फर्टिलाइजेशन संभव। |
| तकनीकी जटिलता | सामान्य प्रयोगशाला प्रक्रिया। | अत्यधिक उन्नत, माइक्रो तकनीक आधारित प्रक्रिया। |
ICSI कब किया जाता है?
ICSI निम्न स्थितियों में सुझाया जाता है:
- शुक्राणु संख्या बहुत कम हो
- शुक्राणु की गति (Motility) कमजोर हो
- शुक्राणु का आकार या संरचना (Morphology) असामान्य हो
- पिछला IVF असफल हुआ हो
- Azoospermia (वीर्य में शुक्राणु न होना) की स्थिति हो
- अनएक्सप्लेंड इंफर्टिलिटी यानी अज्ञात कारणों से गर्भधारण न होना
ICSI के फायदे
- गंभीर पुरुष बांझपन के मामलों में भी गर्भधारण की संभावना बढ़ती है
- बहुत कम शुक्राणु की आवश्यकता होती है
- फ्रीज़ किए हुए या सर्जरी से प्राप्त शुक्राणु का उपयोग किया जा सकता है
- फर्टिलाइजेशन फेल होने का खतरा कम
- IVF फेल होने के बाद भी सफलता की संभावना
ICSI की सीमाएँ और सावधानियाँ
- पारंपरिक IVF से थोड़ा महंगा होता है
- तकनीकी त्रुटि का थोड़ा जोखिम (बहुत दुर्लभ)
- जेनेटिक या क्रोमोसोमल असमानताओं का मामूली खतरा
- हर निषेचित अंडा सफल भ्रूण नहीं बन पाता
निष्कर्ष
IVF और ICSI, दोनों ही आधुनिक विज्ञान के अद्भुत आविष्कार हैं जिन्होंने मातृत्व और पितृत्व की उम्मीद को नया जीवन दिया है।
जहाँ IVF एक प्राकृतिक प्रक्रिया की नकल करता है, वहीं ICSI पुरुष बांझपन की स्थिति में सटीक और प्रभावी समाधान प्रदान करता है।
यदि आप फर्टिलिटी ट्रीटमेंट पर विचार कर रहे हैं, तो एक अनुभवी फर्टिलिटी विशेषज्ञ से परामर्श करें।
हर दंपति की यात्रा अलग होती है, लेकिन आज का विज्ञान हर उम्मीद को हकीकत में बदलने की क्षमता रखता है।

